yogi raj krishan
पवित्र हिंदू ग्रंथ “भगवद् गीता” आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग के रूप में योग की अवधारणा का परिचय देती है।
“भगवद् गीता” एक प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है, जो महाभारत युद्ध के समय कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
भगवद् गीता में योग की अवधारणा को विस्तार से वर्णित किया गया है। यह योग को एक आध्यात्मिक मार्ग के रूप में प्रस्तावित करता है, जो व्यक्ति को आत्मज्ञान, समता, और आत्म-समर्पण की प्राप्ति की ओर प्रेरित करता है। योग के माध्यम से मन, शरीर, और आत्मा की एकीकृतता को प्राप्त किया जा सकता है।
भगवद् गीता में योग के अलग-अलग प्रकार और उनके फलों के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है। इसमें कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के मार्गों का वर्णन किया गया है जो मनुष्य को आत्म-समर्पण, साधना, और आध्यात्मिक प्रगति की ओर प्रेरित करते हैं। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने कर्तव्यों को निष्पादित कर सकता है और आत्मा के आनंद को प्राप्त कर सकता है।
भगवद् गीता एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक ग्रंथ है जो योग की महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है और जीवन में आनंद, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।
भगवद्गीता में योग के विषय में विस्तार से विवरण दिया गया है अध्याय 6 में। यह अध्याय “आत्मसंयमयोग” के रूप में जाना जाता है और यहां योग के विभिन्न पहलुओं और उपायों का वर्णन किया गया है। इस अध्याय में कृष्ण अर्जुन को आत्मसंयम और मन की निग्रह की महत्वपूर्णता पर चर्चा करते हैं और उन्हें योग के माध्यम से आत्मा के साथ संयोग तथा आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति का उपाय बताते हैं। यहां योग का विभिन्न आयाम, ध्यान के माध्यम से मन को नियंत्रित करना, अहंकार की नाश करना, शांति और संतुष्टि की प्राप्ति, शरीर और मन के संयम की महत्वपूर्णता, और आत्मा के द्वारा विश्व के साथ एकता आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।
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