योग का उद्भव एवं संक्षिप्त विकास
आज हम जानेंगे योग के उद्भव और विकास के बारे में
आइए विस्तार से जानें:
योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है, जिसका उद्भव हज़ारों वर्ष पूर्व हुआ। संस्कृत शब्द “युज” से उत्पन्न, योग का अर्थ है “जोड़ना” या “एकत्रित करना”। यह शरीर, मन और आत्मा को एक सूत्र में बाँधता है। इसके अलावा, यह शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में योग का उल्लेख मिलता है। उदाहरण के लिए, ऋग्वेद, उपनिषद और महाभारत में इसके सिद्धांतों और प्रथाओं का वर्णन है। महर्षि पतंजलि ने योग को व्यवस्थित रूप दिया। उन्होंने “योगसूत्र” लिखा, जिसमें अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) का विस्तृत वर्णन है।
समय के साथ, योग ने कई रूपों में विकास किया। उदाहरण के लिए, हठयोग, राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग जैसी शाखाएँ विकसित हुईं। हठयोग शारीरिक आसनों और प्राणायाम पर केंद्रित है, जबकि राजयोग मन के नियंत्रण और आध्यात्मिक उन्नति पर ध्यान देता है।
आधुनिक युग में, योग ने वैश्विक पहचान बनाई है। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है। आज योग न केवल व्यायाम, बल्कि तनाव मुक्ति, मानसिक संतुलन और आत्म-साक्षात्कार का साधन है।
योग का यह सफर प्राचीन ऋषियों की दूरदर्शिता और अथक प्रयासों का परिणाम है। यह मानवता के लिए एक अनमोल उपहार है, जो स्वस्थ, सुखी और संतुलित जीवन जीने की कला सिखाता है।
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